राजस्थान विश्वविद्यालय का 34 वें दीक्षांत समारोह का भव्य आयोजन, माननीय राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने प्रदान की पीएचडी उपाधियाँ व स्वर्ण पदक।

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भारतीय संस्कृति के मूल आधार हैं नैतिक मूल्य : कुलाधिपति बागडे
कासं.(विवि)/ परिष्कार पत्रिका
जयपुर। राजस्थान विश्वविद्यालय का 34वां भव्य दीक्षांत समारोह आज राजस्थान इण्टरनेशनल सेन्टर के सभागार में आयोजित किया गया । इस समारोह में राज्यपाल एवं कुलाधिपति हरिभाऊ बागडे द्वारा विभिन्न परीक्षाओं में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाले विधार्थियों को 124 स्वर्ण पदक प्रदान किये गये, साथ ही 309 पीएचडी उपाधि धारकों को उपाधि का वितरण किया गया, एवं वर्ष 2023 की परीक्षाओं में उतीर्ण 01 लाख 50 हजार 287 विधार्थियों को उनकी उपाधियों की दीक्षा प्रदान की। इस अवसर पर वासुदेव देवनानी, अध्यक्ष, राजस्थान विधानसभा, अरूण सिंह, राज्यसभा सांसद, उत्तरप्रदेश, उप मुख्यमंत्री एवं उच्च व तकनीकी शिक्षा मंत्री प्रेमचंद बैरवा विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। राज्यपाल एवं कुलाधिपति हरिभाऊ बागडे ने अपने उद्बोधन में डिग्री एवं स्वर्णपदक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को शुभकामनाएं एवं बधाई देते हुए कहा कि डिग्री प्राप्त कर अभी आपकी शिक्षा पूरी नहीं हुई है आपको अपने जीवन में अभी बहुत कुछ सीखना है। उन्होने कहा कि आप अपने ज्ञान को निरन्तर बढ़ाते रहिए तथा अपने विषय में उत्कृष्टता हासिल कीजिए। साथ ही प्राचीन ज्ञान परम्परा को याद करते हुए स्वामी विवेकानंद का उदाहरण दिया, और कहा कि मात्र 30 वर्ष की उम्र में स्वामीजी ने शिकागों में धर्म संसद में भारत का परचम लहराया और मात्र 20 वर्ष की आयु में रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से संघर्ष कर स्त्री का मान बढ़ाया। आगे अपने वक्तव्य में माननीय कुलाधिपति ने कहा कि भारतीय संस्कृति का आधार नैतिक मूल्य है क्योंकि भारत में इंग्लैण्ड के विद्यालयों से ज्यादा गुरुकुल थे, जिसे अंग्रेजों ने बंद करके अंग्रेजी शिक्षा पद्धति लागू कर दी। उन्होंने विनोबा भावे का वक्तव्य उद्धृत किया – जिस दिन देश आजाद हुआ उसी दिन से भारत की शिक्षा पद्धति बदल दी गयी होती तो आज देश और प्रगति पर होता। आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा को शामिल किया गया है। उन्होंने प्राचीन शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों को याद किया। उन्होंने कहा कि भारत पौराणिक व ऐतिहासिक देश है यहां की सभ्यता सबसे प्राचीन है। वैज्ञानिक एवं तकनीकी शिक्षा पर बल देते हुए कहा कि भारत ने ही सबसे पहले शून्य का आविष्कार किया तब जाकर पूरी दुनिया ने गणना करना सीखा। उन्होंने भास्कराचार्य का उदाहरण देते हुए कहा कि गुरूत्वाकर्षण का सिद्धांत न्यूटन से पहले भास्कराचार्य ने अपनी पुस्तक सिद्धांत शिरोमणि में दिया। अपने वक्तव्य में भारतीय कला कौशल पर विशेष जोर दिया तथा रणकपुर के मन्दिर एवं ताजमहल का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत की स्थापत्य कला दुनिया में सर्वोपरि है। इसी क्रम में बप्पा रावल का उदाहरण दिया और कहा कि राजस्थान वीरों की धरती है, देश और धर्म पर मर मिटने वालों की भूमि है। भारतीय शिक्षा पर बल देते हुए कहा कि जब पूरी दुनिया में छ: विश्वविद्यालय थे तब उनमें से दो विशवविद्यालय तक्षशिला एवं नालन्दा भारत में थे जिसमेें पूरे विश्व के लोग अध्ययन करने के लिए आते थे। उन्होंने विद्यार्थियों को सुगंधित फूल बनने के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि जिस फूल में मधु नही, वहां भ्रमर भी नहीं आता। इसलिए गुणवान बनो ताकि तुम्हारी पूछ पूरी दुनिया में हो। राज्यसभा सांसद अरूण सिंह ने इस अवसर पर उपाधि प्राप्त करने वाले सभी विधार्थियों को शुभकामनाएं एवं बधाई दी तथा कहा कि राजस्थान विश्वविद्यालय देश का प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है। इसकी गणना देश भर में की जाती है। आज का भारत नया भारत है जो समर्थ, शक्तिशाली एवं नवाचारों से परिपूर्ण है। उन्होंने कहा कि राजस्थान विश्वविद्यालय के मेघावी छात्रों में नए भारत की प्रतिमूर्ति दिखायी देती है। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर में शहीद हुए भारतीय वीरों को श्रद्धांजलि अर्पित की तथा कहा कि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी नये भारत की गणना समर्थ और शक्तिशाली भारत के रूप में होती है। उन्होंने कहा कि पूर्व उप-राष्ट्रपति और वर्तमान उप-राष्ट्रपति भी इस विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं। क्लीन और ग्रीन दोनों में राजस्थान विश्वविद्यालय को अवार्ड मिला है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय का उद्देश्य होता है कि शिक्षार्थ आइए एवं सेवार्थ जाइए। शिक्षा जीवन को उत्कर्ष की ओर ले जाती है। उन्होंने कहा कि ज्ञान की अंतिम परिणिती समाज और राष्ट्र के हित के लिये उत्कृष्ट कार्य करना है। राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष प्रो. वासुदेव देवनानी ने इस अवसर पर कहा कि जिन्हें डिग्री मिली हैं वे स्वावलंबी बने, जीवन मूल्यों के प्रति संकल्पित रहें। उन्होंने भारतीय ज्ञान प्रणाली को याद किया कि इसे वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सम्मिलित किया जाना चहिए। उन्होंने तक्षशिला, नालंदा वल्लभी, विक्रमशिला आदि प्राचीन शिक्षण संस्थानों को याद किया। साथ ही चरक, सुश्रुत, माधव, पाणिनी, पतंजलि, कात्यायन, गार्गी आदि को याद करते हुए शोध एवं अनुसंधान पर जोर दिया। उप-मुख्यमंत्री व उच्च तकनीकी शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमचंद बैरवा ने इस अवसर पर कहा कि शिक्षा जीवन को संस्कारित करती है। उन्होंने राज्य सरकार द्वारा उच्च शिक्षा के लिए किये जा रहे प्रयासों की जानकारी देते हुए कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा राज्य सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। विश्वविद्यालय के शिक्षकों के शोध क्षेत्र में किऐ जा रहे कार्यों एवं उपलब्धियों से वैश्विक स्तर पर राजस्थान विश्वविद्यालय को मिली पहचान को गौरवपूर्ण बताया। विश्वविद्यालय की कुलगुरु प्रो. अल्पना कटेजा ने इस अवसर पर सभी सम्मानित अतिथियों का अभिनन्दन करते हुए अपने स्वागत भाषण में कहा कि दीक्षांत समारोह केवल प्रमाण पत्रों का वितरण नहीं अपितु ज्ञान, साधना और संस्कार के एक युग के पूर्ण होने का उत्सव है। यह उस भारत की आत्मा से जुडऩे का क्षण है जहां शिक्षा का उद्देश्य ’’सा विद्या या विमुक्तये’’ अर्थात् वह विद्या जो मुक्तिका द्वार खोल दे। उन्होंने इस अवसर पर सभी पीएच.डी धारकों एवं गोल्ड मैडल प्राप्त करने वाले विधार्थियों को बधाई एवं शुभकामनाएं दीं। कुलगुरु ने गत वर्ष में विश्वविद्यालय के 150 प्रतिभाशाली विधार्थियों द्वारा खेल, संगीत, नाट्य जैसे विविध क्षेत्रों एवं इसरो, आर.जे.एस., सी.ए, भारतीय सेना, प्रशासनिक सेवा एवं अन्य सेवाओं में चयनित होने वाले विश्वविद्यालय के प्रतिभाशाली विधार्थियो को भी इस अवसर पर बधाई एवं शुभकामनाए दीं। उन्होने इस अवसर पर यह भी कहा कि 04 वर्षों से नेशनल एक्रीडिएशन एण्ड एसेसमेंट काउंसिल से विश्वविद्यालय के एक्रीडेषन की प्रक्रिया लम्बित होने के कारण विश्वविद्यालय को केन्द्र सरकार की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से मिलने वाले अनुदान से वंचित होना पडा। उन्होंने कहा कि मुझे यह उल्लेख करते हुए प्रसन्नता है कि विश्वविद्यालय के नेशनल एसेसमेंट एवं एक्रीडेशन के लिए आवेदन सहित अन्य प्रक्रियाएं पूर्ण करते हुए सैल्फ स्टडी रिपोर्ट प्रस्तुत की जा चुकी है, जिससे विश्वविद्यालय के लिए केन्द्र सरकार से अनुदान प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा। दीक्षंात समारोह के इस अवसर पर विश्वविद्यालय सिंडिकेट, सीनेट एवं शैक्षणिक परिषद् के सदस्य, विभिन्न संकायों के डीन, प्राध्यापक, विश्वविद्यालय के अधिकारी व कर्मचारीगण तथा सभी गोल्ड मैडल एवं पीएच.डी डिग्री प्राप्त करने वाले विधार्थीगण उपस्थित रहेे। कार्यक्रम के अंत में विश्वविद्यालय के कुलसचिव राजकुमार कस्वाँं ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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