Interview – Parishkarpatrika https://parishkarpatrika.com News Website Tue, 11 Feb 2025 13:21:21 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.1 https://parishkarpatrika.com/wp-content/uploads/2023/12/cropped-site-icon-32x32.png Interview – Parishkarpatrika https://parishkarpatrika.com 32 32 राजस्थान में जनधन खाताधारकों की मृत्यु पर उनके उत्तराधिकारियों की बैंकों के चक्कर लगाते घीस रही है जूतियां, फिर भी नहीं मिल रही बैंकों में जमा राशि : चंदालाल बैरवा एडवोकेट https://parishkarpatrika.com/on-the-death-of-jan-dhan-account-holders-in-rajasthan-their-successors-are-going-round-the-banks/ https://parishkarpatrika.com/on-the-death-of-jan-dhan-account-holders-in-rajasthan-their-successors-are-going-round-the-banks/#respond Tue, 11 Feb 2025 13:21:12 +0000 https://parishkarpatrika.com/?p=1898

ब्यूरो चीफ रवि सिंह / परिष्कार पत्रिका
जयपुर। धरातल की सच्चाई – जनधन योजना वित्तीय सशक्तिकरण क्रान्ति के लिए एतिहासिक पहल, लेकिन क्रियान्वयन में खोट, मृतक खाता धारकों की जमा राशि मिलने में हो रही है परेशानी: चन्दा लाल बैरवा
जनधन योजना के खाते सफलतापूर्वक 28 अगस्त 2024 को एक दशक पूरे होने पर प्रधानमंत्री को हार्दिक बधाई व शुभकामनाऐं। जनधन योजना यपीएमजेडीवाई प्रधानमंत्री द्वारा संचालित एक वित्तीय सशक्तिकरण के लिए एतिहासिक योजना थी, जिसको 28 अगस्त, 2024 को, पूरे दस वर्ष हो गये। दस वर्षो में पूरे देश में लगभग 53 करोड से अधिक जनधन खाते बैंको में खोले जा चुके है। इसका परिणाम यह रहा कि 80 प्रतिशत वयस्कों का किसी न किसी बैंक में खाता है। प्रधानमंत्री की मंशा व सोच प्रगतिशील है ताकि ग्रामीण लोगों के पैसे सुरक्षित रहे, सरकारी की विभिन्न प्रकार की योजनाओं का लाभ सीधा लाभार्थीयों के खाते में स्थानान्तरण हो सके इसलिए प्रधानमंत्री ने एक विशेष अभियान चला कर 28 अगस्त 2014 में जनधन खाते पूरे देश में खोलने का एक विशेष अभियान चलाया गया। यह अभियान राजस्थान के साथ-साथ पूरे देश में चला। ग्रामवासियों को छोटी पूंजी को रखने के लिए कोई सुरक्षित जगह नही थी, किसी को उधार देने पर थोडे सी ब्याज के लालच में, मूल राशि ही डूब जाती थीए जिससे मूल राशि भी सुरक्षित नही रहती थी तथा ब्याज भी नही मिलता था। केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा संचालित योजनाओं का लाभ पोस्ट ऑफिस द्वारा नगद राशि मिलने पर लाभार्थी को योजना की पूरी राशि नही मिलती थी, बीच में बिचोलिया खा जाते थे। चाहे वो मनरेगा की राशि हो, विधवा पेंशन योजना, वृद्वा पेंशन योजना, विशेष योग्यजन पेंशन योजना, अतिवृष्टि, अनावृष्टि की मिलने वाली आर्थिक सहायता, आदि किसान सम्मान निधि योजना आदि का लाभ पूरा लाभार्थीयों को नही मिलता था लाभार्थीयों के बीच में छृट्ट भैया दलाल, राजनेता, सेवा शुल्क के नाम पर कुछ प्रतिशत राशि हजम कर जाते थे। इसका सीधा लाभ लाभार्थी को मिले इसके लिए जनधन खाता खोलने व सभी योजनाओं का लाभ सीधा लाभार्थी के खाते में स्थान्तरण करने की एक क्रान्तिकारी पहल थी। जनधन खातो का सीधा-सीधा लाभ 65 प्रतिशत से अधिक खाते ग्रामीण या अर्धशहरी क्षेत्रों में है। करीब 39 लाख करोड रूपये का प्रत्यक्ष हस्तांतरण हुआ है। लगभग 30 करोड महिलाओं को बैकिंग प्रणाली से जोडा गया, यह एक सराहनीय प्रयास था, लेकिन जनधन खाता अभियान के एक दशक पूरा होने पर भी जनधन खाता धारकों को कई समस्याओं का सामना करना पड रहा है, जिसके कारण से जनधन खाता धारकों को योजना से जुडे लाभ का फायदा नही मिल पा रहा है।
जनधन खाता धारकों को मिलने वाला लाभ
जनधन खाता धारक लाभार्थी की मृत्यु पर 30,000 हजार का जीवन कवर उपलब्ध कराती है, जो 15अगस्त 2014 से 31 जनवरी 202015 के बीच खोले गये है। खाता धारक को बीमा की सुविधा मिलेगी जो नॉमिनी को फायदा मिलता है। जनधन खाता किसी भी बैंक में खुलवा सकते है। 1 लाख का इक्सीडेंट इंश्योरेस और 30 हजार का लाईफ टाइम कवर भी मिलता है। 28 अगस्त 2018 के बाद दुर्घटना बीमा 2 लाख कर दिया गया है।
यह जांच का विषय है कि क्या उक्तलाभ खाता धारकों को मिल रहा है या नही सवाल खडा होता है, जनधन खाता के उक्तलाभों का प्रचार प्रसार के अभाव से खाता धारक को इनका लाभ नही मिल रहा है। बैंक प्रबन्धकों द्वारा जनधन खाता योजना के लाभ बताया नही जाता है। बात यही समाप्त नहीं होती खाता धारकों की चिन्ता जब ज्यादा बढ जाती है जब खाता धारक की मृत्यु हो जाने पर खाता धारक का नॉमिनी/ उत्तराधिकारी जब बैंक में जाता है तो उसको बैंक प्रबन्धक यह कह कर टरका देता है कि आपका नाम खाते में नॉमिनी में नही है, जबकि बैंक प्रबन्धक की जिम्मेदारी व जवाबदेही होनी चाहिये कि आवेदन करते समय नॉमिनी का नाम आवेदन पत्र में लिखे, बिना नॉमिनी के खाते में लेन-देन ही नहीं होना चाहिये ना ही बिना नॉमिनी के खाता खोलना ही नही चाहिये था। कई खाताधारकों ने आवदेन के समय नॉमिनी का नाम लिखा लेकिन बैंक से रिकोर्ड नहीं मिलने के कारण से खाता धारक की बैंक में जमा पूंजी प्राप्त करने के लिए नॉमिनी की जूतिया घीस जाती है, लेकिन खाताधारक के उत्तराधिकारी को जमा राशि नही मिलती और हार थक कर नॉमिनी बैंक में जाना बन्द कर देता है। यदि कोई पढा लिख व्यक्तियह पता लगाने का प्रयास करता है कि नॉमिनी उत्तराधिकारी का नाम बैंक के रिकोर्ड में या कम्प्यूटर में क्यों नही है तो बैंक शाखा प्रबन्धक कहते है कि लाखो की संख्या में बैंक में खाते खोले गये थे, फार्म पता नही कहा गुम हो गया, मिल नही रहा व बैंक प्रबन्धक ने उस समय आवेदक के फार्म को कम्प्यूटर में अपलोड नही किया जिसके कारण से ना तो फार्म मिल रहा ना ही सॉफ्ट कापी खाता में अपलोड की गई है, जिसका खामियाजा बैंक धारक के नॉमिनी/ उत्तराधिकारी को भुगतना पड रहा है। बैंक वालों का इतना ही कहना होता है और मृतक की जमा पूंजी बैंक डकार जाता है और बैंक में जमा राशि बैंक में ही रह जाती है। मैं प्रधानमंत्री से यह कहना चाहता हूं कि आपने जनधन खाता के एक दशक पूरे होने पर कहा था कि उनकी दुनिया ऐसी थी जहां बचत घर पर रखी जाती थी, जिसके खोने तथा चोरी होने का खतरा बना रहता था। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि कर्ज तक पहुंच साहूकारों की दया पर निर्भर थी। वित्तीय सुरक्षा के अभाव में कई सपने पूरी नहीं हो पाते थे।
मैं प्रधानमंत्री का ध्यान आकर्षित करते हुये कहना चाहता हूॅ कि देश के गरीब गुरर्बा लोग पहले साहूकारों की दया पर निर्भर थे, अब खाता धारक की मृत्यु हो जाने पर पैसे लेने के लिए नॉमिनी, बैंक प्रबन्धक पर निर्भर होता नजर आता है। साहूकार को दया आ जाती थी, लेकिन बेंक प्रबन्धक कानून कायदों व दस्तावेजो का हवाला देकर नॉमिनी को बैंक से टरका देता है उसकी कोई सुनने वाला नही है। यह एक व्यक्ति की पीडा नहीं है जनधन खाता धारक जो काल के गाल के समा गये सभी मृतकों के लाखो नॉमिनी/ उत्तराधिकारी के करोडो रूपये बेंको में जमा है, लेकिन जनधन खाता संचालक, प्रबन्धक, किसी का इस समस्या पर एक दशक बाद भी ध्यान नही गया।
जनधन खाता धारकों के खोले गये खातों की निम्न बिन्दूओं पर राष्ट्रीय स्तर पर समीक्षा करने के लिए जाने माने अर्थशास्त्री की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जावे तथा निम्न बिन्दूओं पर समीक्ष करे। जनधन योजना के तहत एक दशक में कितने खाता खोले गये। कितने खाता धारक की मृत्यु हो गई। कितने खाता धारकों के खाते में नॉमिनी उत्तराधिकारी का नाम दर्ज था। कितने खाता धारकों की मृत्यु पर कितने नॉमिनी/ उत्तराधिकारी को जमा राशि दी गई। कितने खाता धारकों की मृत्यु पर कितने नॉमिनी/ उत्तराधिकारी को जमा राशि नही दी गई तथा किसी कारण से नही दी गई। एक दशक में कितने खाता धारकों की कितनी जमा रिश बैंक में जमा है। राज्यवार। जमा राशि का मुख्य कारण क्या है। जमा राशि नॉमिनी/ उत्तराधिकारी को बैंक प्रबन्धक द्वारा नही दी गई। इसके लिए शाखा प्रबन्धक कौन जिम्मेदार है। नॉमिनी/ उत्तराधिकारी की जमा राशि नही दी गई इसके लिए बैंक प्रशासन द्वारा एक दशक में क्या रणनीति तैयार की गई इस पर एक समीक्षा होनी चाहिये तथा इसका क्रियान्वयन होना चाहिये तभी आपका कहना सार्थक साबित होगा कि साहूकारों की दया पर निर्भर थी, वित्तीय सुरक्षा के अभाव में कई सपने पूरे नही हो पाते थे। आशा है मोदी इस पर जरूर गौर कर प्रभावित लाभार्थीयों को उनका हक जमा राशि को नॉमिनी/ उत्तराधिकारी को दिलवाने के लिए ठोस दिशा निर्देश जारी करेगे। राज्यवार जनधन खातों की समीक्षा करवायेगे तो सामने आयेगा कि लाखों खाता धारकों के करोडो रूपये उनके नॉमिनी/ उत्तराधिकारी को नही मिले है, जो की उनका अधिकार है।

चंदालाल बैरवा, एडवोकेट, ग्राम चकवाडा, तह. फागी, जिला जयपुर राज.

]]>
https://parishkarpatrika.com/on-the-death-of-jan-dhan-account-holders-in-rajasthan-their-successors-are-going-round-the-banks/feed/ 0
लेख – भारतीय ज्ञान परम्परा और जयशंकर प्रसाद https://parishkarpatrika.com/article-indian-knowledge-tradition-and-jaishankar-prasad/ https://parishkarpatrika.com/article-indian-knowledge-tradition-and-jaishankar-prasad/#respond Wed, 29 Jan 2025 14:12:54 +0000 https://parishkarpatrika.com/?p=1840


परिष्कार पत्रिका जयपुर। भारतीय ज्ञान परम्परा का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। यह वेदों, पुराणों, उपनिषदों के रूप में अपने विचारों और ज्ञान से सम्पूर्ण मानवता का पथ प्रदर्शन करता रहता है। इस परम्परा ने साहित्य, कला, विज्ञान, धर्म, संस्कृति इत्यादि में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसी परम्परा के आधुनिक भारतीय साहित्य के एक अद्वितीय स्तंभ छायावाद के प्रतिनिधि कवि एवं साहित्यकार श्जयशंकर प्रसाद है। जयशंकर प्रसाद भारतीय ज्ञान परम्परा के सच्चे प्रतिनिधि कवि हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से यह सिद्ध किया है कि भारतीय साहित्य केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है बल्कि यह मानवता को दिशा दिखाने वाला एक दार्शनिक भी है। प्रसाद की रचनायें भारतीय परम्परा और आधुनिकता का संगम है जो हमें अपनी जड़ों से जुडऩे और भविष्य की ओर बढऩे की प्रेरणा देती है। उनका साहित्य हमें हमारी संस्कृति पर गर्व करना सिखाता है। उनका मानना था कि भारतीय संस्कृति एवं साहित्य ज्ञान का भण्डार है, जो न केवल हमारी प्राचीन धरोहर है बल्कि हमारी पहचान भी है। भारतीय ज्ञान परम्परा भौतिक और आध्यात्मिक जीवन के बीच संतुलन स्थापित करने की बात करती है।
इस परम्परा में कविताए नाटक और कथा के माध्यम से जीवन और मानवता के मूलभूत प्रश्नों पर चिंतन किया गया है। यह परम्परा आधुनिक काल में भी साहित्यिक और सांस्कृतिक रूप में प्रासंगिक उपयोगी बनी रही हैं। इस परम्परा को जयशंकर प्रसाद जैसे साहित्यकारों ने नई दिशा प्रदान की है।
भारतीय ज्ञान परम्परा की विशेषताएं : भारतीय ज्ञान परम्परा की यदि बात की जाए तो यह हम पाते है कि इसने सदैव ही सृष्टि के गूढ़ रहस्यों को जानने-समझने का प्रयास किया है। यह परम्परा भौतिक और आध्यात्मिक जीवन के बीच संतुलन स्थापित करने की बात करती है। भारतीय ज्ञान परम्परा एक विरासत है, जो हजारों सालों से चली आ रही है। यह परम्परा अनुशासन, आत्मनिर्भरता और सभी के लिए सम्मान जैसे मूल्यों पर जोर देती है। इस परम्परा में लौकिक और पारलौकिक कर्म, धर्म, भोग, त्याग का अद्भुत समन्वय है। इसमें ज्ञान-विज्ञान, जीवन-दर्शन, अनुभव-अवलोकन, प्रयोग-विश्लेषण इत्यादि शामिल है।
भारतीय ज्ञान परम्परा की अगर साहित्य में बात की जाए तो रामायण, महाभारत, वेद-पुराण, उपनिषद आदि ग्रंथ मानव के धार्मिक, सांस्कृतिक एवं दार्शनिक मार्गदर्शन के स्त्रोत रहे हैं। इस परम्परा को आधुनिक काल में भी समृद्ध और प्रासंगिक बनाये रखने में जयशंकर प्रसाद ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भारतीय ज्ञान परम्परा में जयशंकर प्रसाद का योगदान : जयशंकर प्रसाद 1889-1937 हिन्दी साहित्य के छायावादी युग 1918 से 1937 ई के एक प्रमुख स्तम्भ थे। उन्होंने अपनी कृतियों में भारतीय ज्ञान परम्परा को आधुनिक संदर्भों में प्रस्तुत किया है। उनकी रचनाएँ इस बात का प्रमाण है कि भारतीय दार्शनिकता और जीवन मूल्य साहित्य के माध्यम से कैसे जनमानस को प्रेरित कर सकते है। प्रसाद ने तेरह नाटकों की सर्जना की है। यदि इन नाटकों में ज्ञान एवं ऐतिहासिकता की बात करें तो कामना और एक घूंट को छोडक़र लगभग सभी नाटक मूलत: इतिहास पर आधृत है। इसमें महाभारत से लेकर हर्ष तक के समय का वर्णन किया गया है। स्कंद गुप्त, चंद्र गुप्त, जन्मेजय का नागयज्ञ, अजातशत्रु इत्यादि नाटक भारतीय ऐतिहासिक ज्ञान परम्परा की वाटिका के पुष्पों की भाँति है, जो सदैव अपनी ज्ञान रूपी सुगंध से हमें सुवासित करते रहते हैं। प्रसाद के नाटकों में सांस्कृतिक और राष्ट्रीय चेतना इतिहास की भित्ति पर संस्थित हैं। प्रसाद ने अपने दौर के पारसी रंगमंच की परम्परा को अस्वीकारते हुए भारत के गौरवमय अतीत के अनमोल चरित्रों को सामने लाते हुए अविस्मरणीय नाटकों की रचना की।
यदि काव्य की बात करें तो जयशंकर प्रसाद ने झरना, आँसू, लहर, प्रेम पथिक, कामायनी सहित कई बेहतरीन काव्य संग्रह दिये है जो भारतीय ज्ञान परम्परा के कोष में एक-एक मोती की भाँति प्रकाशमान है। कामायनी पन्द्रह सर्गों में विभाजित एक महाकाव्य है। इस कृति ने प्रसाद को अमर बना दिया। इस कविता संग्रह में मानव सृष्टि के आदि से लेकर अब तक के जीवन का मनोवैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक विकास वर्णित है। साथ ही इसमें मानवता के कल्याण के लिए आनंदवाद और समरसता की स्थापना की गई है। प्रसाद के काव्य का प्रमुख तत्व प्रेम और सौन्दर्य की अनुभूति है। इसी कारण जयशंकर प्रसाद ने अपने काव्य में मनुष्य, प्रकृति और ईश्वर तीनों के सौन्दर्य का आकर्षक चित्रण किया है। जयशंकर प्रसाद ने न सिर्फ बेहतरीन नाटक व काव्य दिये अपितु कहानियाँ भी भारतीय ज्ञान परम्परा कोष में मणियों की तरह अपनी ज्ञान और गौरव की आभा बिखेरते हुए नजर आती है। जयशंकर प्रसाद के पाँच कहानी संग्रहों छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आँधी तथा इन्द्रजाल इत्यादि में उनकी लगभग सत्तर 70 कहानियाँ संग्रहित है। इन कहानियों में मानव जीवन के प्रत्येक पहलुओं को प्रदर्शित किया गया है। इनकी कहानियाँ समाज की समस्याओं, स्वतंत्रता, न्याय, जाति-धर्म, स्त्री सम्मान, प्रेम-त्याग, समर्पण जैसे मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करती है। साथ ही इनकी कहानियों में मानवीयता, आध्यात्मिकता, धार्मिकता को भी प्रमुखता दी गई है। प्रसाद की कहानियों को पढ़ कर पाठकों को मन की शांति, अन्तरंग सुन्दरता आध्यात्मिक ज्ञान का अनुभव होता है।
जयशंकर प्रसाद की रचनाओं की विशेषता : प्रसाद स्वयं कई विशेषताओं से परिपूर्ण व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने भारतीय ज्ञान परम्परा में अविस्मरणीय कृतियाँ देकर स्वयं को भारतीय साहित्य में अमर बना लिया। उनकी काव्यगत कुछ ऐसी विशेषताएँ है जो उन्हें हिन्दी साहित्य जगत में अन्य साहित्यकारों से भिन्न एवं उच्च स्थान परविराजमान करती है। जैसे – नाटकों में भारतीय इतिहास और गौरव-प्रसाद के नाटक जैसे. चन्द्रगुप्त, ध्रूवस्वामिनी, स्कंदगुप्त आदि भारतीय इतिहास और ज्ञान परम्परा की महानता को उजागर करते है। इन नाटकों में ऐतिहासिक घटनाओं के वर्णन के साथ-साथ भारत की सांस्कृतिक विरासत का संदेश भी है। इन नाटकों में सांस्कृतिक, आत्मनिर्भरता एवं देशभक्तिकी भावना का चित्रण है।
कविता में दार्शनिकता एवं मानवता, जयशंकर प्रसाद की कविताओं में भारतीय दर्शन का चित्रण किया गया है। कामायनी में वेदांत और सांख्य दर्शन के विचार प्रस्तुत किए गये है।
श्रद्धा और मनु के माध्यम से मानव जीवन के संघर्ष, प्रेम और संतुलन को दर्शाया गया है।
कहानियों में भारतीय संस्कृति का गौरव एवं संरक्षण : प्रसाद की कहानियों एवं उपन्यास भारतीय समाज और संस्कृति को गहराई से दर्शाते है। इनकी कहानियाँ न केवल मनोरंजक हैं, बल्कि उनमें भारतीय जीवन मूल्यों का संरक्षण भी है। पुरस्कार, छोटा जादूगर नामक कहानियाँ इसका श्रेष्ठ उदाहरण है। स्पष्ट है कि जयशंकर प्रसाद ने भारतीय ज्ञान परम्परा को न केवल अपने साहित्य में जीवित रखा बल्कि उसे आधुनिक विचारधाराओं के साथ भी जोड़ा। इन्होंने अपनी रचनाओं में दर्शाया है कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर आज भी प्रासंगिक है और उसे अपनाकर हम अपने जीवन को समृद्ध बना सकते है। प्रसाद ने साहित्य को एक ऐसा माध्यम बनाया है जो हमें हमारी संस्कृति को समझने और भविष्य के लिए प्रेरणा लेने में सहायक है। भारतीय ज्ञान परम्परा और जयशंकर प्रसाद का योगदान आज भी हमें प्रेरित करता है और आने वाले समय में भी साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में मार्गदर्शन करता रहेगा।

शोधार्थी
माया पचेरवाल व्याख्याता
हिंदी विभाग,
भाषा साहित्य भवन,
गुजरात विश्वविद्यालय,
अहमदाबाद गुजरात 380009

]]>
https://parishkarpatrika.com/article-indian-knowledge-tradition-and-jaishankar-prasad/feed/ 0