डाॅक्टर भगवान का रूप है : पूनिया

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आईएसएम एज्यूटेक का 20 वां वार्षिकोत्सव संपन्न
परिष्कार पत्रिका जयपुर। आईएसएम एज्यूटेक की ओर से ली मेरिडियन होटल, में 20वां वार्षिकोत्सव समारोह आयोजित किया गया। इस समारोह में देश भर में एज्यूटेक से बने डॉक्टर और विदेशों में पढ़ने वाले विद्यार्थी शामिल हुए। इसमें शैक्षिक प्रौद्योगिकी नेटवर्क के द्वारा होने वाले कार्यक्रम में ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक विषयों पर चर्चा की गई। समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. सतीश पूनिया, पूर्व भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि वैश्विक महामारी कोरोना में डाॅक्टरों ने ही आम नागरिकों को बीमारी से लड़कर उबारने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। डॉक्टरों को इसीलिए ही धरती का भगवान माना गया। आइईएसएम एज्यूटेक इस क्षेत्र में बहुत बड़ी भूमिका और महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आईएसएम एज्यूटेक के सीईओ डॉ. फाणी भूषण पोटू ने कहा कि पिछले 20 वर्षों से आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों को विदेश से चिकित्सा क्षेत्र में प्रवेश और रोजगार दिलाने में उल्लेखनीय योगदान दे रहा है। एज्यूटेक शिक्षा तथा व्यापक और इंटरैक्टिव शिक्षण का समर्थन करने वाले मजबूत संरचनात्मक ढांचे पर डिजाइन से विद्यार्थियों को मजबूत बनाता है। एज्यूटेक का उद्देश्य राजस्थान में मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव, देखभाल की गुणवत्ता और रोगी परिणामों में सुधार लाने का है। एज्यूटेक द्वारा 20 से अधिक वर्षों के अनुभव के साथ 12,000 से अधिक छात्रों को उपलब्धि हासिल करने के लिए सशक्त बनाया है। असाधारण डॉक्टर बनने का उनका सपना साकार कर रहे है। हमारे व्यापक नेटवर्क में 14 शैक्षणिक संस्थान शामिल हैं। हमारा प्रयास है कि दुनिया भर में प्रतिष्ठित अर्न्तराष्ट्रीय चिकित्सा विश्वविद्यालय में हम पारदर्शिता प्रदान करने पर गर्व करते हैं, वैयक्तिकृत और व्यवस्थित मार्गदर्शन, यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रत्येक छात्र को व्यावहारिक समर्थन प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है। डॉ. ओशिवा सक्सेना ने कहा कि जिन विद्यार्थियों को भारत में डाॅक्टर बनने का सपना पूरा नहीं होता उन्हें हम विदेशों में डाॅक्टर बनाकर भारत में सेवा करने के लिए तैयार करते हैं। इस मौके पर विदेशों में भारतीय विद्यार्थियों को डाॅक्टर बनाने में उल्लेखनीय योगदान करने वाले किर्गिस्तान के 11, जाॅर्जिया के 8, कजाकिस्तान और ताजिक के 4 – 4 डॉक्टरों को स्मृति चिन्ह, गुलदस्ता देकर और शाॅल ओढ़ाकर राजस्थानी परंपरा के अनुसार सम्मान किया गया।

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